यह कहानी एक ऐसे सच्चे सिपाही कर्नल अर्पित सिंह की है, जिसने बचपन की गरीबी, संघर्ष और मां की तपस्या के बल पर सेना में प्रवेश पाया। उसकी ज़िंदगी देश की सेवा में समर्पित रही—चाहे वो युद्ध के मैदान हों या शांति का समय। अपने पूरे जीवन में वह देश और लोगों के लिए जिया। सेना से सेवानिवृत्त होने के बाद वह अपने गांव लौटा, जहां उसने बच्चों को प्रेरित किया, अनुशासन सिखाया और गांव को एक नई दिशा दी। एक दिन देश को फिर उसकी ज़रूरत पड़ी, और वह सलाहकार के रूप में सीमा पर गया और संकट टालने में मदद की। इसके बाद उसका बेटा विराट सिंह भी सेना में गया। वीरता से लड़ते हुए घायल हुआ, मगर बच गया। पिता की तरह बेटे ने भी देश की सेवा की, और दोनों ने मिलकर गांव में 'युवा प्रेरणा केंद्र' शुरू किया। अंत में, अर्पित अपने बेटे को देखता है और मानता है कि उसकी अधूरी कहानी अब पूरी हो गई है। कहानी सच्चे देशभक्त, पिता-पुत्र के रिश्ते और एक सिपाही की अमर भावना की मिसाल बनकर समाप्त होती है।
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