गुस्सा

यह कविता "गुस्सा" मानव हृदय में उठने वाली उस तीव्र भावना को व्यक्त करती है, जो ज्वालामुखी की तरह फूटती है और सब कुछ बदलकर रख देती है। यह गुस्से के नकारात्मक प्रभावों के साथ-साथ उसके सकारात्मक उपयोग की ओर ध्यान आकर्षित करती है। कविता एक संदेश देती है कि गुस्से को नियंत्रित कर सही दिशा में मोड़ना जरूरी है, ताकि यह विनाश का कारण न बने, बल्कि न्याय और सशक्तिकरण का साधन बन सके।

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दैनिक प्रतियोगिता

: विजय सांगा
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