"खामोश चीखें" एक ऐसी चीख... जो सुनाई नहीं देती, पर हर दिल को हिला देती है। जब सपनों की चूड़ियाँ कांच की तरह टूटीं, जब विश्वास की डोर गले का फंदा बन गई, और जब समाज ने एक बेटी, एक पत्नी, और एक वकील को गुनहगार ठहराया — तब साक्षी ने सिर्फ आवाज़ नहीं उठाई... उसने पूरी व्यवस्था को हिला कर रख दिया। "अनकही चीखें" सिर्फ एक महिला की कहानी नहीं है, यह उन लाखों साक्षियों की कहानी है — जो घर की चारदीवारी में दम तोड़ देती हैं, जिनके आँसू तक 'इज्जत' के नाम पर दबा दिए जाते हैं, जिन्हें न्याय माँगने पर 'कलंकिनी' कहा जाता है। यह कहानी है साक्षी की — एक सशक्त लेकिन टूटी हुई आत्मा की, जिसने अपने पति की हिंसा, समाज के तिरस्कार और अपनों की बेरुखी के बीच, सिर्फ खुद को नहीं — सभी आवाज़ों को लड़ना सिखाया। यह कहानी है आरव की — जिसने उसे टूटने नहीं दिया, जिसने उसे उसकी खामोशी में सुना, और उसकी "अनकही चीखों" को अपने वजूद का हिस्सा बना लिया। यह कहानी है उस हर पिता की, जो अपनी बेटी को हौसला देना चाहता है। हर माँ की, जो चुप है लेकिन भीतर से ज्वालामुखी है। हर बहन की, जो डर और संस्कारों के बीच पिस रही है। और हर पाठक की, जो सच का सामना करने की हिम्मत रखता है। यह सिर्फ एक उपन्यास नहीं — एक आंदोलन है। एक आईना है। एक चीख है — जो अब खामोशी में नहीं दबेंगी। क्या आप तैयार हैं उस सच्चाई से मिलने के लिए, जिसे अब तक सबने अनसुना किया? पढ़िए — खामोश चीखें.
© Copyright 2023 All Rights Reserved